मेरी धीर धरौ ब्रह्म्ज्ञानी मेरी सुधि लैकें
आप समान जगत नहीं पाया
दे दिया शबद नहीं सकुचाया
अब करि देउ बेडापार मेरी सुधि लैकें
सुत नारी संग शीश नभाऊँ
नित उठि आपकौ अलख जगाऊँ
अब करि देउ भव से पार मेरी सुधि लैकें
करि जाऊँ मैं करम जो खोटौ
क्षमा दीजियौ नजर से भैंटौ
अब में नहीं मूरत जाऊँ मेरी सुधि लैकें
कहैं परदीप सुनौ भई ध्याना
निज बा घर कौ करौ बखाना
प्रभू करि लेउ मुझको दास मेरी सुधि लैकें
0 Comments