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NARI KA DARD

यह कहानी एक नारी की दर्द, संघर्ष, और समृद्धि की कहानी है, जो समाज की सोच को परिवर्तित करती है और उसे एक नई दिशा में ले जाती है। यह चाँदनी की तरह है, जो अंधेरे को दूर करती है और सपनों को साकार करने की दिशा में मदद करती है।

है रात अभी रूठी-रूठी मन भी मेरा क्यों कुंद भला,

ऐ चाँद अभी रुक जाना यहीं मन में हल्की आहट सी लगी,

छोडो अपना तुम सफर कहो,

आह्ट न थी आँख नम सी हुई,

क्या कोई और भी विरह में यूँ जलता है,

जग की रुखी सी यादों में,

मत भूलना तुम उस देहलीज को फिर,

जिसको वर्षों से लाँघा न गया,

मर्यादा की कोई सीख तो ले,

तिल-तिल मरती अवला निश-दिन,

कोई कवि ही मन वहला देता,

जिस दिन से जनम लिया इसने,

बन भाई पिता चाचा ताऊ,

कहते न थकी वानी जिनकी,

चल छोड बेटी वो ऐसा ही है,

फिर आग लगा दी उन रिस्तों को,

और चक्कर कटवाकर भुला दिया,

कर दिया पराया पल भर में,

कर दिया सुपुर्द अनजाने को,

पल भर रोकर यूँ आफत काटी,

ये लगा वर्षों का सुकून मिला,

कर विदा चले गंगा नहाने,

तब कुटुम्ब बडा ही हर्षाया,

डाँका पड गया अलमारी में,

जिसे लाडो ने बचपन से सजाया,

छीना झपटी सब सामान हुआ,

जो गुडिया ने वर्षों में बनाया,

दीपक दिखा किया जब स्वागत,

मन ही मन छवि दुशमन जैसी,

गहनों की गिनती करी वहीं,

अब आ जाओ पूरा पाया,

यूँ मुँह देखकर करें वयाँ,

चालू तो बहुत है वचना बहिना,

नारी होकर सब आतंक किये,

मेरा यूँ मन छलनी-छलनी,

अब आस पिया की करे भला,

वो कहे जीत ले मन घर का,

इस कदर करो सेवा घर की,

क्योंकि उस पर एहसान कुटुँब किया,

ऋण ना चुकता हो पाये सभी.

सो गारंटी तब तक की तेरी,

जब तक जेहन में प्राण पडे,

बीता पूरा यूँ जीवन है,

कोई दर्द वयाँ भी ना करता है।

अवला की रुष्ठ कहानी को,

ऐ मालिक कुछ तो अब तू ही बता,

क्या नूर तेरा भी दोहरा है,

नारी के लिये क्यूँ दंश वना,

नर फिर क्यों अवला पर भारी है।

है रात अभी रूठी-रूठी मन भी मेरा क्यों कुंद भला,

ऐ चाँद अभी रुक जाना यहीं मन में हल्की आहट सी लगी,

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