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DHARM AUR DIKHAVA

 यह सत्य है कि कई बार धर्म और दिखावा इंसान को असली भक्ति से दूर ले जाते हैं, और उसे वास्तविक भगवान के साथ कनेक्ट होने की बजाय झूठे पाखण्डों में फँसा देते हैं। इससे इंसानियत को नुकसान होता है, क्योंकि वह अपने असली मूल्यों से दूर हटता है और दुसरों के साथ सहजता और समर्थन की भावना खो देता है।

समाज को पाखण्ड और बुराईयों से बचाने के लिए हमें धर्म को साहित्यिक और विचारशील दृष्टिकोण से निरीक्षण करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि असली भक्ति और धर्म का मतलब एक-दूसरे के साथ सामंजस्य और प्रेम में रहना है, और न कि दिखावा और आत्ममिथ्या के क्षेत्र में खो जाना है।

तू क्यों फिकर करे मेरी बंदे, मंदिर मस्जिद सब मेरे हैं।

चल छोड भ्रम की तस्वी फैंक, बाहर और भीतर हम तेरे हैं॥

इस कदर मिला तेरे जीवन में, ज्यों हवा में पानी मिश्रित है,

हर धूप के रेशे-रेशे में मिश्रित, और धरती के कण-कण में है,

चल छोड खबर झूठी है तेरी, मंदिर में देखा कहीं-कहीं,

खुद झाँक आप में जतन करो,बच्चे नारी नर सब मेरे हैं ।

कुल जाति धर्म में क्यों भिन्नता, भूमंड्ल भूखंड घने,

वन जीवन हिम सागर खगोल, नदियाँ झील पहाड घने,

भूत पिचास जिंदा और मुर्दा, स्वर्ग लोक बैकुंठ बने,

आड्म्बर पाखण्ड त्याग तू, फिर सपने और हम तेरे हैं।

ना धूप चाहिये मोमवत्ती भी, रुपया धन सोना नहीं कभी,

नहीं कष्ट् देह को अपनी दे, घर बैठे मिलूँ में वहीं कही,

हैं सत्य वचन मत मनमानी कर, दुख सारे उपजें यूँ ही सभी,

भक्त नहीं वो बहुत भला हो, बस सपनों में वो मेरे है,

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