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गुरु अरजी



 
गुरु चरनो में रख लो मुझे, विनती करता जमाने से ।
कोई कर के बहाने से, कोई कर के बहाने से ॥
कोई ऐसा मुझे वर दो, सेवा में रहूंँ हरदम ।
नहीं भटकूंँ में जग झूठा, मैं तो मानू तुझे हरदम्॥
इतनी दूरी चलूंँ कैसे, तन्हा रसते वीराने से ।
गुरु चरनों....................
मरजी तीरी है मेरा क्या, मैं तो कह भी नहीं सकता ।
कहना सुनना मेरे वस में, जब होगी तेरी कृपा ॥
अपनी अरजी कहूँ कैसे , इतने ऊंचे घराने से ।  
गुरु चरनों....................
काम मेरा है रटना तुझे, ईससे ज्यादा कहूंँ क्या तुझे ।
काम आवाज देना तुझे, सुनन ना सुनना हाथ तेरे॥
जितनी गलती हुई मुझसे, लाजमी है अंजाने से ।
गुरु चरनों....................
तुमने सब कुछ तो पहले दिया, और मांँगू क्या मैं तुझसे।
तु है मालिक मैं दास तेरा, फिर क्या मुझे आजमाने से ॥
सेवक विनती करे कब से, बदलो मेरे ठिकाने से ।
गुरु चरनों....................

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