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उजली-उजली ये किरन...

 


 उजली- उजली ये किरन, उजली-उजली ये हवा ।
क्या कहे क्या सुने जैसे हो मेरी दिलरुबा ॥ 
चलते हुये ऐ चांद बता, मेरे महबूब क पता लगा।
गाते हुये पंछी सुन जा, बहती हवायेंं रुक भी जा॥
फूलोंं की खुशबू तू जा, उसके आंँगन को महका।
हाले दिल तू उसको मेरा, और मुझे उसका बतला॥
 उजली- उजली ये------------------
दिन को जाकर रात को आकर, तारे तू भी गीत सुना।
परियांँ कैसे रहतीं हैं, उनसे मुझको भी मिलवा॥
उनसे कहूंँगा चांँद को मेरे, आसमान की सैर करा।
सूरज से लाली लेकर के, मेरे महबूब के बदन लगा॥
 उजली- उजली ये--------------------
नदियांँ सागर मीठी ताल बना, बादल गरज के ढोल बजा।
पानी की रिमझिम वरसा, सागर से पानी ढो ला॥
वक्त यहीं पर तू थम जा, मेरे महबूब का आना हुआ।
बागोंं की कलियां खिल जा, भंँवरे तू खुशबू न चुरा॥
 उजली- उजली ये--------------------
हरियाली धुन बोल सुना, पेड पवन के सुर बन जा।
पर्वत झुक कर तू भी आ, हार गले का तू बन जा॥
सजता हुआ कैसा ये समा, बिन काजल श्रंंगार बना।
मंँहके कैसे फूल बता, सागर अपने मोती चुन ला॥

  उजली- उजली ये किरन, उजली-उजली ये हवा ।
क्या कहे क्या सुने जैसे हो मेरी दिलरुबा ॥ 



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