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मेरा कोई अपना नहींं है इस सारे जहाँ में



कि मेरा कोई अपना नहींं है इस सारे जहाँ में,
कि मेरा कोई सपना नहीं है इस सारे जहाँ में।

संगी हैं सारे सबके अकेला मैं ही कयोंं हूँं,
एक थी जहाँने परी सी, रूठ कर मुझसे वो भी।
चली गई दूर कयोंं है मेरी सांसे भी थी वो,
खुदारा छीन ले तू जमाने की भी साँसें ।
अब तो जीन भी कैसा मेरी साँसें ही नहींं हैं ,

 कि मेरा कोई अपना............
ऐ खुदा तु ही बता अब करूँ कया आगे अब में ,
जिंदगी इतनी खफ़ा है मौत चाहे हरदम ये।
दिल के अरमा निकल कर खडे हैं राहोंं मेंं किसी के,
अब तो अरमा भी देकर धोका निकले हैं हमी से।
जीना मरना भी कैसा मेरे अरमा ही नहीं हैं,

कि मेरा कोई अपना..............
एक गुल कह रहा था चुपके से रो रहा था ,
प्यार करके यहाँ पर खुशी भी रो रही है।
गमों का जोर क्योंं हैंं मेरी तदवीर पै यूँ,
जहाँरा रोक भी ले गमों के मेरे क्रम को।
नहीं क्या तुझको खबर है गमों से चूर नहीं हैं ,

कि मेरा कोई अपना................
भूल जाना अच्छा है अब तो उसकी सूरत को,
गैर की हो गयी वो कभी मेरी थी जाँ वो।
उसने मुडके ना देखा मेरी हालत के सुकूँ को,
लगेंं उसको बलायें मेरी किस्मत की लकी की।
डूब जाये ये दुनियाँ ऐसा क्योंं होता नही है,

कि मेरा कोई अपना नहींं है इस सारे जहाँ में,
कि मेरा कोई सपना नहीं है इस सारे जहाँ में।

    
  


 

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